लिहाफ़ - Lihaaf | IAAN Express
लिहाफ़ - Lihaaf | Hindi Story |
इतने
सालों के साथ के बाद इतना तो मैं समझ सकता था कि कोई तो बात जरूर है कि कभी कभी
रीना अपनी किसी ख्याली दुनिया में अक्सर गुम हो जाती है। हाँ, वैसे शिकायत नहीं कोई मुझे
उससे। पर कभी- कभी महसूस होता है कि दस साल की शादी के बाद भी ,कहीं कुछ तो था- एक इन्विज़िबल
-सा गैप जो हमें अच्छे दोस्त बनने से रोकता- सा रहा था। आज फिर लेटे- लेटे यही
ख्याल आ रहा था।
“सुनिए,एक बात कहनी थी आपसे "
बालों में कंघा फिराते वह बोली। नींद को बमुश्किल अपने से दूर करते,लिहाफ के एक कोने से मुँह निकाल
मैंने पूछा “हाँ कहो,क्या हुआ?
“वो दिन में चाचाजी का फोन आया
था…कुछ
दिनों में यहाँ आने की बात कर रहे थे…”
“अरे लो ,आज तुम इसी सोच में डूबी हुई थी
क्या ?…अच्छा
है। पर तुम तो महान हो सच्ची। मायके से कोई आए, तो औरतें कितनी खुश हो जाया
करती हैं। पर एक तुम हो।
शाम से ही कितना अजीब बिहेव कर रही हो। ये चाचाजी तो पहले भी तुम्हारे घर काफी आया
जाया करते थे न। बढ़िया है।चलो आओ…लाइट ऑफ कर दो। ”लेकिन क्या इतनी -सी ही बात थी
बस?फिर रीना
सारी रात करवटें क्यों बदलती रही थी|
"ओहो राधा!बिटिया को क्यों ले आई
हो साथ में? इसे
स्कूल भेजा कर न। इतना समझाती हूँ ,तुझे पर समझ ही नहीं
आता।” रीना की
आवाज़ ने मुझे सन्डे सुबह सुबह जगा दिया और मैं रजाई में दुबके- दुबके गर्म चाय के
कप का इंतज़ार करते ,उनकी
बातचीत सुनने लगा।
“अरे दीदी!बस ऐसे ही हमार पीछे
चली आत है।”
“मुझे सब पता है। ऐसे ही धीरे
धीरे पूरे काम बच्चियों के सर डाल देते हो तुम लोग।”
“कुछ नईं होगा दीदी एसो कछु ।”
”
अच्छा
अच्छा ये पिंकू का पुराना स्वेटर इसे पहना दो तो, और पहले चलो दोनों जने भी चाय
पी लो।”
“सब कोठीओवाली में आप ही सबसे
नेक हो दीदी। सुनो कोई पुराना- उराना,कम्बल,सूटर,साल वाल हमारे वास्ते भी पड़ी हो
तो …”
चाय सुडकते मुझे हँसी आ गयी।
“बस हो गया तुम्हारा माँगना
शुरू!पुरानी चीजें हम रखते ही कहाँ है बता तो। और इस समय तो तुम्हें पैसे भी नहीं
दे पाएँगे…"
“अरे कोई बात नही। जाड़ा कट ही
जाये जाईसे तैसे। असल में एक रजाई तो है हमार पास, पार साल तक बड़ी बिटिया ,हम,ई और मुन्ना तो उसी मे दुबक जाइते
थे। परे बड़ी बिटिया अब न आ पहिये। ऊपर से गाँव से रिश्ते के चाचा आन चाह रहे हैं न
कुछ काम ढूंढने खातिर…तो हम
सोच रहे…”
“तो अब क्या करेगी?"
"अरे ऊ च्चाचा आपना बिस्तर उस्तर
भी तो लाईगा न।इत्तना
जाडा मे का ऐसे ही आ जावेगा? सो ई बिटिया को हम ओके साथ ही सुला देंगे। ठीक है न बिटिया?"
"दीदी?…दीदी… दीदी…का हुआ? भैय्याजी जल्दी इधर आओ तो…जल्दी,देखो दीदी को का हुई गवा ।”राधा बौखलाई सी जोर से चिल्ला
रही थी।
मैं
लिहाफ फेंक लम्बे डग भरता रसोई की तरफ दौड़ पड़ा। और भौंचक्का रह गया। ये रीना ही थी
या कोई और?उसकी तो
पूरी की पूरी भावभंगिमा ही बदल गयी थी। चेहरा बुरी तरह तमतमाया हुआ था, होंठ काँप रहे थे। तना हुआ बदन
अजीब तरह से थरथरा रहा था। आँखों में आँसू छलक आये थे।
"क्या हुआ रीना? मैंने बेहद घबराते हुए पूछा। पर
उसने मेरा हाथ झटक दिया।
“जाइये,वो जो नया लिहाफ बनकर आया है
उसे ले आइये।”
इतनी सर्द आवाज़ थी उसकी ,कि क्यों , किसलिए वगैरह पूछने की हिम्मत नहीं हुई मेरी। चुपचाप लाकर उसके सामने रख दी।
“ले राधा,ले जा इसे। ये सिर्फ तेरी
बिटिया के लिए है। हमेशा वह इसी में सोएगी और अकेले। और तुम जो दिन भर मुन्ना -मुन्ना
करती रहती हो,ध्यान
इसका भी रखा करो। ये कुछ न भी कह पाए,तो भी इसके इशारे
समझो। और खबरदार!! जो इसे कब्भी किसी मामा,दादा चाचा के साथ......।” और कटे तने सी रीना कुर्सी पर ढह गयी। अब वह अवश सी।। हिचकियों से रोये जा रही थी।कभी उसकी पीठ, तो कभी सर सहलाते हुए मैं सोच रहा था।। इस समय दिल का भारी बोझ उतर जाने से कौन ज्यादा सुकून महसूस कर रहा है।राधा, रीना या मैं?
समझो। और खबरदार!! जो इसे कब्भी किसी मामा,दादा चाचा के साथ......।” और कटे तने सी रीना कुर्सी पर ढह गयी। अब वह अवश सी।। हिचकियों से रोये जा रही थी।कभी उसकी पीठ, तो कभी सर सहलाते हुए मैं सोच रहा था।। इस समय दिल का भारी बोझ उतर जाने से कौन ज्यादा सुकून महसूस कर रहा है।राधा, रीना या मैं?
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